तुम
तुम जो ये कविता पढ़ रहे हो
तुम नहीं हो मेरे प्रिय पाठक
मैं तुम्हारे लिए नहीं
तुम्हारे खिलाफ लिख रहा हूँ
इस उम्मीद में की
कविता लिखने के पहले
जो बेचैनी मेरे अंदर थी
वो कविता पढ़ने के बाद
तुम्हारे अंदर हो
इस उम्मीद में की
एक दिन तुम्हारी चेतना
तुम्हारी हिंसक शांति
के खिलाफ विद्रोह कर देगी
इस उम्मीद में
की कुछ तो बच जाएगा
सब ख़त्म होने क बाद भी
तुम्हारे अंदर
मैं ये कविता लिख रहा हूँ
इस उम्मीद में
की कुछ तो बच जाएगा
सब ख़त्म होने क बाद भी
तुम्हारे अंदर
मैं ये कविता लिख रहा हूँ
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