Wednesday 27 May 2020

पाठक के नाम संदेश

तुम 
तुम जो ये कविता पढ़ रहे हो
तुम नहीं हो मेरे प्रिय पाठक 
मैं तुम्हारे लिए नहीं
तुम्हारे खिलाफ लिख रहा हूँ
इस उम्मीद में की 
कविता लिखने के पहले 
जो बेचैनी मेरे अंदर थी 
वो कविता पढ़ने के बाद 
तुम्हारे अंदर हो
इस उम्मीद में की
एक दिन तुम्हारी चेतना 
तुम्हारी हिंसक शांति 
के खिलाफ विद्रोह कर देगी
इस उम्मीद में
की कुछ तो बच जाएगा
सब ख़त्म होने क बाद भी
तुम्हारे अंदर
मैं ये कविता लिख रहा हूँ 

Thursday 21 May 2020

नाकामयाब समय के कामयाब लोग

नाकामयाब समय के कामयाब लोग कैसे होते हैं?
मुझे तो लगता है कि वो
घर जाते ही उतार देते हैं अपनी चमड़ी
और डाल देते हैं उसे वाशिंग मशीन में
फिर आंखों को, नाक को, कानों को
सीलबंद अलमारी में सहेज कर रख देते हैं
और अंत में रह जाते हैं सिर्फ दांत
जिनसे वो अपनी दिनभर की कामयाबी को रातभर चबाते हैं